मन तो कभी भी मचल सकता है पर हमारी भावनाओं का बहाव किस ओर से है वो बहुत ही महत्वपूर्ण है।
हम कैसे चरित्र का निर्माण करना चाहते हैं वो अति महत्वपूर्ण है।
अपने ज्ञान की झोली से परे होकर कभी-कभी अपने विपरीत होकर भी सोचना चाहिए तब जाके पता चल पाता है कि हम कहाँ तक सही और कहाँ तक गलत हैं।
यूँ तो सभी के अंदर आत्मा का वास है जो कि निरंतर सर्वशक्तिमान परमात्मा से जुड़ा हुआ है पर वो कभी भी कुछ नहीं कहता है और न ही हमारे कार्यकलापों को नियंत्रित करता है वो तो बस साक्षी है।
आत्मा तो वह कागज है जिमसें हमारे क्रियाकलापों को लिखने के लिए सदैव रिक्त स्थान रहता है।
जय श्री कृष्ण
अंगिरा प्रसाद मौर्य
03/03/2019